Tribal Struggle : जल, जंगल, जमीन की पुकार, संवैधानिक मूल्यों की अनदेखी के खिलाफ आदिवासियों का संघर्ष

Tribal Struggle: Struggle of tribals against the call of water, forest, land, ignoring constitutional values
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Tribal Struggle – बैतूल – मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमाओं पर बसे सैकड़ों गांवों के सामने एक बार फिर विस्थापन का संकट खड़ा हो गया है। ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना, मेलघाट अभ्यारण्य विस्तार और चिल्लौर-नहरपुर जैसी योजनाएं हजारों आदिवासी परिवारों को उनकी सदियों पुरानी जमीन और जीवन से बेदखल करने की ओर बढ़ रही हैं।

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ताप्ती परियोजना से जीवन पर संकट

ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना के चलते हजारों एकड़ भूमि डूब क्षेत्र में आ सकती है, जिससे करीब 19,265 की आबादी पर सीधा असर पड़ेगा। यह क्षेत्र मुख्य रूप से वनोपज पर निर्भर है – जैसे महुआ, गुल्ली, और अन्य वन उत्पाद, जो इनकी आजीविका का आधार हैं। यहां की प्रमुख जनजातियां – गोंड, कोरकू, बाल्मीकि, चर्मकार और हरिजन समुदाय – इस परियोजना से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। Also Read – Personality Test : आप हैं मासूम या चालाक ? एक तस्वीर से जानें अपनी असली पर्सनैलिटी

संविधान की पाँचवीं अनुसूची और पेसा कानून के तहत आदिवासी क्षेत्रों में किसी भी परियोजना को ग्रामसभा की सहमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके, इन योजनाओं में स्थानीय स्वशासन के अधिकारों की लगातार अनदेखी की जा रही है। आदिवासी संगठनों का आरोप है कि प्रशासन ने उनकी राय लिए बिना निर्णय ले लिए हैं, जो सीधे संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।

प्रशासन को सौंपी गई मांगें

आदिवासी समुदाय और संगठन जैसे जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) इन प्रमुख मांगों के साथ सरकार के समक्ष खड़े हैं:

1. ताप्ती मेगा रिचार्ज परियोजना को रद्द किया जाए।

2. मेलघाट अभ्यारण्य विस्तार को रोका जाए।

3. चिल्लौर-नहरपुर परियोजना बंद की जाए।

4. विस्थापितों को उचित मुआवजा और पुनर्वास की गारंटी दी जाए।

प्रशासन का कहना है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा गया है और मामले को आगे जांच के लिए भेजा गया है। लेकिन अब तक किसी भी योजना में विस्थापन से संबंधित ठोस पुनर्वास नीति की घोषणा नहीं हुई है।

यदि सरकार संवैधानिक मूल्यों और जनहित की मांगों को नजरअंदाज करती है, तो यह आंदोलन और व्यापक रूप ले सकता है। आदिवासी संगठनों ने चेतावनी दी है कि वे अपने जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए व्यापक जनआंदोलन छेड़ेंगे।

विशेषज्ञों की राय में, बिना संतुलित नीति के किया गया विस्थापन केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक ताने-बाने को भी गहरे स्तर पर प्रभावित करेगा। Also Read – MP Cabinet Meeting 2025 : मध्यप्रदेश को मिली 4303 करोड़ की सौगात

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