7 चिरंजीवियों में से एक
Saint Kripacharya – महाभारत का युद्ध एक ऐतिहासिक गाथा है, जिसे हर कोई जानता है, लेकिन इसके पीछे के पात्रों की कहानियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। उनमें से एक हैं कृपाचार्य, जो न केवल कौरवों और पांडवों के गुरू थे, बल्कि सात चिरंजीवियों में से एक माने जाते हैं।
कृपाचार्य का परिचय | Saint Kripacharya
कृपाचार्य, महर्षि गौतम शरद्वान के पुत्र थे और उनके समय में सप्तऋषियों में गिने जाते थे। उनकी बहन कृपी का विवाह गुरु द्रोणाचार्य के साथ हुआ, जिससे कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा भी बन गए। कृपाचार्य ने पांडवों और कौरवों दोनों को शिक्षा दी, और उनकी निष्पक्षता के कारण उनका नाम आज भी अमर है। Also Read – Kisan News : बूम टाइप मशीन, किसानों के लिए फसलों में छिड़काव का आसान समाधान
महाभारत में भूमिका
महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से लड़े थे। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य के साथ मिलकर उन्हें सेनापति बनाया गया। ये तीनों योद्धा मिलकर पांडवों की सेना को काफी नुकसान पहुँचाने में सफल रहे। हालाँकि, जब कर्ण की मृत्यु हुई, तो कृपाचार्य ने दुर्योधन से कई बार संधि की कोशिश की, लेकिन दुर्योधन अपने अहंकार को छोड़ने को तैयार नहीं थे।
चिरंजीवी का वरदान | Saint Kripacharya
कृपाचार्य को चिरंजीवी रहने का वरदान प्राप्त था, जिसके कारण उन्हें युद्ध के बाद बचने का मौका मिला। मान्यता है कि कृपाचार्य आज भी मानव रूप में धरती पर विचरण कर रहे हैं।
निष्कर्ष
कृपाचार्य का जीवन और उनकी भूमिका न केवल महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण थी, बल्कि उन्होंने निष्पक्षता और समर्पण का एक अद्भुत उदाहरण भी प्रस्तुत किया। उनके ज्ञान और अनुभव से आज भी हमें सीखने की प्रेरणा मिलती है। Also Read – Kisan News : सरकार ने इस योजना में किया बड़ा बदलाव, फसलों की MSP होती थी तय