Radish Varieties : मूली की इन किस्मों की खेती करके मालामाल हो रहे हैं किसान भाई 

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इसी महीने शुरू करें इनकी बुआई

Radish Varieties – मूली एक पौष्टिक और स्वादिष्ट सब्जी है, जो आमतौर पर सर्दियों में बाजार में अधिक बिकती है, हालांकि इसकी खेती पूरे साल की जाती है और इसकी मांग भी हमेशा बनी रहती है। मूली का वैज्ञानिक नाम रैफानस सैटाइवस है। इसकी जड़ में अधिक पानी की मात्रा होने के कारण यह ताजा और स्वादिष्ट होती है। मूली में विटामिन सी, पोटैशियम और फाइबर भरपूर मात्रा में होते हैं, जो इसे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी बनाते हैं।

उत्तम पैदावार के लिए सर्वोत्तम किस्मों का चयन महत्वपूर्ण है। मूली का उपयोग सलाद, सब्जी, और अचार के रूप में किया जाता है, और कुछ क्षेत्रों में इसके पत्तों को भी सब्जी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। मूली की खेती सरल है और इसकी फसल कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे यह किसानों के लिए कम समय और कम लागत में एक अच्छा विकल्प बनती है। अधिक मुनाफा कमाने के लिए मूली की सही किस्म का चयन आवश्यक है। सितंबर के महीने में इन तीन किस्मों की बुआई से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। आइए जानते हैं इन किस्मों के बारे में। Also Read – 2 new districts in the state : प्रदेश में 2 नए जिले बनाने के प्रस्ताव को मोहन कैबिनेट मंजूरी का इंतजार 

पूसा रेशमी | Radish Varieties

पूसा रेशमी मूली की एक प्रमुख किस्म है, जो अपनी उच्च गुणवत्ता और बेहतर उपज के लिए पहचानी जाती है। इसकी जड़ें 30 से 35 सेंटीमीटर लंबी और मध्यम मोटाई की होती हैं। ऊपर से यह हरेपन की हल्की झलक के साथ सफेद होती है, और इसका स्वाद तीखा होता है। यह किस्म 55 से 60 दिनों में फसल के रूप में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 315 से 350 क्विंटल तक उपज देने की क्षमता रखती है।

रैपिड रेड व्हाईट टिप्ड:

स्वाद में चरपरी रैपिड रेड व्हाईट टिप्ड मूली अधिक उपज देने वाली किस्मों में से एक है। यह बुवाई के बाद 25 से 30 दिनों में फसल के रूप में तैयार हो जाती है। इस किस्म से एक हेक्टेयर में 250 क्विंटल तक की उपज प्राप्त की जा सकती है। इसकी जड़ें छोटी होती हैं और चमकदार लाल रंग की बाहरी परत के साथ अंदर का गूदा सफेद होता है।

पंजाब पसंद | Radish Varieties

पंजाब पसंद मूली की एक किस्म है जो जल्दी (45 दिनों में) तैयार हो जाती है। इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी खेती किसी भी समय की जा सकती है। इसकी जड़ें लंबी, सफेद, और बिना बालों वाली होती हैं। मुख्य सीजन में यह प्रति हेक्टेयर 215-235 क्विंटल तक की औसत उपज देती है, जबकि ऑफ-सीजन में 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की औसत उपज मिलती है। इसकी जल्दी पकने और बेमौसम बुवाई की क्षमता के कारण यह किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। Also Read – MP Vande Bharat : खुशखबरी, प्रदेश को जल्द मिलेगी 2 स्लीपर वंदे भारत 

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